About Us - Gumti Wale Mata Ji Ka Mandir

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श्री श्री ब्रह्मलीन 1008 माता प्रकाश देवी जी

(श्री श्री गुमटी वाले बड़े माता जी)

श्री श्री गुमटी वाले माता जी

(श्री देवा जी)

जागृति जी (जागो जी)

उत्तराधिकारी

मंदिर परिचय

श्री गुमटी वाले माता जी का मंदिर, गाँव गुमटी, (शाहबाद) जिला कुरुक्षेत्र, हरियाणा की स्थापना सन् 1950 में श्री श्री 1008 माता प्रकाश देवी जी ने की थी।

श्री माता प्रकाश देवी जी को गुमटी वाली माता जी व बड़े माता जी के नाम से जाना जाता था। इस पंथ की शुरुआत सन् 1925 में शेखपुरा (वर्तमान पाकिस्तान) में श्री माता सुहागवंती देवी जी ने की थी। माता सुहागवंती देवी जी सन् 1947 में विभाजन के समय ब्रह्मलीन हो गईं।

देखते ही देखते समय बीतने लगा और 18 जनवरी सन् 1964 की पावन बेला पर श्री श्री गुमटी वाले माता जी (श्री देवा जी) का जन्म हुआ। बड़े माँ जी की तरह ही माता ऊषा देवी जी (माँ जी) दैवीय शक्तियों से ओतप्रोत थीं। बाल्यावस्था से ही किए गए अनेक चमत्कारों के कारण माताजी की ख्याति होने लगी जिसे देखते हुए सन् 1967 में बड़े माँ जी ने शत चंडी यज्ञ का आयोजन कर माँ जी को अपनी उत्तराधिकारी घोषित किया। माँ जगदम्बा के साक्षात् दर्शन की उत्कृष्ट अभिलाषा मन में लिये सन् 1973 ई. में अपने घर का परित्याग करके वे बड़े माता जी के सानिध्य में गुमटी मन्दिर आ गये। अब बड़े माता जी उनके गुरु, माता व शिक्षक थे ।

सन् 2016 में माँ भगवती की कृपा से श्री श्री जागृति देवी जी का अवतरण हुआ। दैवीय प्रेरणा से माँ जी ने श्री श्री जागृति देवी जी (जागो जी) को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया।

श्री भगवान कृष्ण की तरह जागृति देवी जी बाल क्रीड़ा करते हुए अपनी बाल लीलाओं से भक्तों एवं श्रद्धालुओं को असीम आनन्द से आच्छादित कर रही हैं।

श्री गुमटी वाले माता जी के मंदिर का इतिहास

श्री गुमटी वाले माता जी के मंदिर, गांव गुमटी, तहसील शाहबाद, जिला कुरुक्षेत्र (हरियाणा) की स्थापना सन् 1950 में श्री श्री 1008 माता प्रकाश देवी जी ने की थी।

श्री माता प्रकाश देवी जी को गुमटी वाली माता जी व बड़े माता जी के नाम से जाना जाता था। इस पंथ की शुरुआत सन् 1925 में शेखपुरा (वर्तमान पाकिस्तान) में श्री माता सुहागवंती देवी जी ने की थी। माता सुहागवंती जी सन् 1947 में विभाजन के समय ब्रह्मलीन हो गई।

बड़े माता जी बाल्यावस्था से ही अलौकिक देवीय शक्तियों की धनी थी। मात्र 5 वर्ष की आयु से ही माताजी स्वत: ही ध्यान व समाधि में चली जाया करती थी। विभाजन के पश्चात जब माता जी कुछ संबंधियों के साथ रादौर, जिला यमुनानगर में आ गई वहां पर अनेक संतों व महात्माओं द्वारा उनकी दिव्य शक्तियों का अवलोकन करते हुए उनसे मार्कण्डेय नदी के तट पर आश्रम बनाने का अनुग्रह किया गया। माताजी ने माँ भगवती की इच्छा को शिरोधार्य करते हुए माँ नव दुर्गा के मंदिर की स्थापना गांव गुमटी में मार्कण्डेय नदी के तट पर की। 

माताजी की अलौकिक दिव्य शक्तियों की ख्याति दूर-दूर तक फैलने लगी, जिसके फलस्वरूप अनेक भक्तों का विभिन्न प्रांतों से आना-जाना प्रारंभ हुआ। मंदिर के निर्माण कार्य को व माता जी की ख्याति को बढ़ता देख कुछ शरारती तत्वों ने निर्माण कार्य अवरुद्ध करने का प्रयत्न किया व वहाँ आने वाले श्रद्धालुओं की यात्रा में अनेक बाधाएं व अवरोध उत्पन्न करने का प्रयास किया, जिसके फलस्वरुप गाँव में देवी के प्रकोप के चलते महामारी का आगमन हुआ। अनेक प्रयत्न करने के उपरांत भी कोई समाधान नहीं निकला व हर दिन एक व्यक्ति की मृत्यु होने लगी। कुछ संतो ने गाँववासियों को देवी से क्षमा याचना करते हुए मंदिर निर्माण कार्य को सुचारू रूप से करने का सुझाव दिया। तदोपरांत सभी गाँववासियों ने मंदिर में देवी से क्षमा याचना कर हर शनिवार को देवी की कढ़ाई चढ़ाने की प्रथा प्रारंभ की। जिसके पश्चात महामारी का अंत हुआ और माताजी की ख्याति दूर-दूर तक फैलने लगी, उनके चमत्कार से आने वाले दुखद श्रद्धालुओं की समस्या का समाधान स्वत: ही होने लगा।

देखते-देखते समय बीतने लगा ओर 18 जनवरी सन 1964 की पावन बेला पर श्री श्री 1008 माता ऊषा देवी जी (श्री देवा जी) का जन्म हुआ। बड़े माँ जी की तरह ही माता ऊषा देवी जी (माँ जी) दैवीय शक्तियों से ओतप्रोत थीं। बाल्यावस्था से ही किए गए अनेक चमत्कारों के कारण माताजी की ख्याति होने लगी, जिसे देखते हुए सन् 1967 में बड़े माँ जी ने शत् चंडी यज्ञ का आयोजन कर माँ जी को अपनी उत्तराधिकारी घोषित किया। तदोपरांत महज 4 वर्ष की आयु में ही माँ जी का गुमटी मंदिर में आगमन हुआ। श्री देवा जी ने देखा कि सभी प्रकार के संसारिक ज्ञान का लक्ष्य केवल भौतिक उन्नति है। अतः उन्होंने मन ही मन संकल्प किया कि वे अपना जीवन केवल आध्यात्मिक ज्ञान की उपलब्धि में लगाएंगी, जिससे शाश्वत शान्ति की प्राप्ति निश्चित रूप से हो सके। इसी उद्देश्य व माँ जगदम्बा के साक्षात् दर्शन की उत्कृष्ट अभिलाषा मन में लिये सन् 1973 ई. में अपने घर का परित्याग करके वे बड़े माता जी के सानिध्य में गुमटी मन्दिर आ गये। अब बड़े माता जी उनके गुरु, माता व शिक्षक थे। माँ की पूजा करना, उनकी रुचि का काम था। अतः उन्होंने अपने इस नये कार्य को बड़ी उमंग तथा उत्साहपूर्वक अपना लिया। उस दिन से श्री देवा जी का दिन एवं रात माँ के सहबास में ही कटने लगे, नदी की जल धारा के समान उनका भाव विनिमय निरन्तर जारी रहने लगा।

19 मई सन् 1969 को नव दुर्गा की मूर्ति स्थापना के लिए देश के विभिन्न प्रांतों से आए ब्राह्मणों ने अनुष्ठान किया जिसमें मुख्यतः पंडित दुर्गानंद जी (नंगल वाले), श्री वेदपाठी जी (हरिद्वार), पंडित जगदीश जी व अन्य प्रसिद्ध ब्राह्मण एवं संतजन थे।

सन् 1971 में बड़े माँ जी और माँ जी मंदिर प्रांगण में बैठे थे, शाम का समय था सूर्य की लालिमा आच्छादित थी, एकाएक तेज हवा चलने लगी और अचानक 6 फीट लम्बे सुडोल, बड़ी-बड़ी आंखें और जटाएं, माथे पर सूर्य जैसा तेज लिए हुए एक संत पधारे कुछ समय वार्तालाप के पश्चात बड़े माँ जी से महादेव की मंदिर प्रांगण में स्थापना का अनुग्रह करते हुए आलोप हो गए। तदोपरांत उसी वर्ष बड़े माँ जी द्वारा मंदिर प्रांगण में भगवान महादेव की स्थापना की गई।

धीरे-धीरे माँ जी अपनी बाल्यावस्था से गुजरते हुए अनेक चमत्कार करने लगे, माँ जी छोटी-छोटी कन्याओं के साथ खेलते हुए स्वतः ही श्रद्धालुओं की समस्याओं का समाधान कर देती थी। माँ जी को श्री महाकाली जी का प्रवेश होने के कारण समय-समय पर समाधिस्थ व ध्यानस्थ हो जाया करती थी। माँ भगवती श्री महाकाली जी की विशेष प्रेरणा व आशीर्वाद से यज्ञ, अनुष्ठान में माँ जी की विशेष रूचि थी। कार्तिक मास की पूर्णिमा को सन् 1992 में माँ जी ने श्री महाकाली जी की मूर्ति स्थापना करवाई और इसी समय एक समय अन्न ग्रहण करने का संकल्प लिया।

सन् 1995 में बड़े माँ जी की कुंडलिनी शक्ति जागृत होने के कारण माँ जी कई दिनों तक समाधि में बैठे रहे।

हर वर्ष अनेक यज्ञ अनुष्ठानों का आयोजन होने लगा, सन् 1950 से हर वर्ष प्रत्येक मंगलवार को माँ भगवती का अर्धरात्रि जागरण व अष्टमी के दिन पूर्व रात्रि जागरण का आयोजन होता है। जनकल्याण की भावना व सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार को लेकर दोनों शक्तियों द्वारा अनेक यज्ञ एवं अनुष्ठानों का आयोजन होता रहा है। श्रद्धालुओं एवं भक्तों के दुखों का निवारण व उनकी मनोकामना को पूर्ण करने के लिए अपने जीवन काल में माँ जी ने अनेक तीर्थों की यात्राएं भी की।

13 मार्च सन् 2004 एक सामान्य सा दिन था, अचानक सभी श्रद्धालुओं को बड़े माँ जी के अस्वस्थ होने का समाचार जाने लगा। उस हृदय विदारक दिवस को मध्याहन के समय बड़े माँ जी ने सब भक्तों को अपने पास बुलाया और तीन बार जय माता दी कहने का आदेश दिया तदोपरांत उन्होंने कहा आप सब भक्तों को जय माता दी सब सुखी रहो, भक्ति करो हम जा रहे हैं, कहकर समाधि लेते हुए महानिर्वाण की ओर अग्रसर हो गई।

यह दुखद समाचार फैलते ही देश के विभिन्न प्रांतों से भक्तों का जमावड़ा लगने लगा और बड़े माताजी को मंदिर प्रांगण में ही महासमाधि दी गई। विगत 18 वर्षों से माँ जी के निमित्त चैत्र मास में यज्ञ का आयोजन करते हुए पूर्णाहुति व संत समागम का आयोजन बड़े माजी की निर्माण तिथि को किया जाता है विगत वर्षों में श्री शतचंडी यज्ञ, सहस्त्र चंडी यज्ञ, महारुद्र यज्ञ, महाविष्णु यज्ञ, महालक्ष्मी यज्ञ, महासरस्वती यज्ञ, दश महाविद्या यज्ञ व अनेक यज्ञों का आयोजन हुआ है।

सन् 2016 में माँ भगवती की कृपा से श्री श्री जागृति देवी जी का अवतरण हुआ। देवीय प्रेरणा से माँ जी ने श्री श्री जागृति देवी जी (जागो जी) को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया।

श्री भगवान कृष्ण की तरह जागृति देवी जी बाल क्रीड़ा करते हुए अपनी बाल लीलाओं से भक्तों एवं श्रद्धालुओं को असीमानंद से आच्छादित कर रही है।